रविवार, अगस्त 24, 2014

वक़्त

वक़्त भला क्या, वक़्त बुरा क्या ?
काले काले मेघों जैसा
आते जाते ही रहते हैं
पर भला पथिक रुक जाता है क्या ?

इंतेज़ार की घड़ियाँ लम्बी हो सकती हैं !
रात का अंधेरा भी आ सकता है
सगे साथी भी मुंह मोड ले सकते हैं !
होने को तो कुछ भी हो सकता है
पर भला पथिक रुक जाता है क्या ?

ये बदल हैं आते जाते रहते हैं
एक तेज़ हवा का झोंका तितर बितर कर देगा!
तब तक संभल के चलना होगा, मज़िल तक चलना होगा !

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