ग़ज़ल
वो सामने बैठी है,
मेरे दिल का राज़ है !
उसके होठों से जो भी निकले,
वोह मेरे दिल कि आवाज़ है !
मैं कैसे कहूँ, चुप कैसे रहूँ,
वो मेरे टूटे दिल का साज़ है !
उसके चेहरे का पर्दा,
उसकी हया का राज़ है !
वोह चुप सी बैठी है,
यह उसका रिवाज़ है !
मैं कैसे कहूँ, चुप कैसे रहूँ,
वो मेरे टूटे दिल का साज़ है !
उसके सर का घूंघट,
उसके सर का ताज है !
तुम गैर उसे बेशक समझो,
वोह मेरा सरताज है!
मैं कैसे कहूँ, चुप कैसे रहूँ,
वो मेरे टूटे दिल का साज़ है !