रविवार, जून 09, 2013

ये ज़रूरी तो नहीं

मैं तुम्हें उम्र भर चाहूं ये दीवानगी मेरी,
तुम भी उम्र भी चाहो ये ज़रूरी तो नहीं!
मैं तुम्हारी मस्त निगाहों का हूँ कायल,
पर तुमको हो खबर ये ज़रूरी तो नहीं!
मेरी सांसों के लिए तेरा प्यार जरूरी है मगर,
तुमको अहसास हो इसका
ये जरूरी तो नहीं!

शुक्रवार, जून 07, 2013

मतलब का है ये संसार प्रिये !

अंत की बारी तो आनी ही है
जहाँ से आये वहां खो जानी ही है
सब जीत के सब जाना हार प्रिये
फिर ऐसा क्यों व्यवहार प्रिये ?
जब मतलब का है ये संसार प्रिये !

---------Full Poem--------
मोहब्बत कैसी कैसा प्यार प्रिये
सब मतलब का है संसार प्रिये
जब तक है, तेरी मेरी ले-दे
तब तक है सब सबका यार प्रिये
वरना है सब बेकार प्रिये (१)

सदियों से ये चल रहा खेल प्रिये
ये भागम भाग ये ठेल प्रिये
मैं आगे तुमसे, तुम आगे मुझसे
यार! बंद करो अब ये रेल प्रिये
ऐसा जीवन लगता है जेल प्रिये (२ )

चलो सुन ले अपने मन की
कुछ देर चलें उपवन में प्रिये
बहते जल का कल कल सुन ले
चिड़ियों का कलरव सुन लें
सुन लें जो दिल का राग प्रिये
जो जायेगा, फिर बैराग प्रिये (३ )

अंत की बारी तो आनी ही है
जहाँ से आये वहां खो जानी ही है
सब जीत के सब जाना हार प्रिये
फिर ऐसा क्यों व्यवहार प्रिये ?
जब मतलब का है ये संसार प्रिये !

(आलोक कुमार श्रीवास्तव २०१३ )

शनिवार, मई 18, 2013

निर्णय - एक लेख

  
मनुष्य की सफलता सही निर्णय लेने की क्षमता पर बहुत हद तक निर्भर करती है ! निर्णय छोटे या बड़े हो सकते हैं ! प्रायः ऐसा देखने में आता है कि निर्णय नब्बे प्रतिशत परिस्थियों के भावावेश में आकर लिए जाते है ! बहुधा आकर्षक विज्ञापन, प्रचारकों के प्रभावशील भाषण, लोग क्या कहेंगे, इत्यादि से वशीभूत होकर लिए गए निर्णय प्रायः गलत साबित होते हैं !
सही समय पर निर्णय न ले सकने के बारे में के लोक कहावत प्रचलित है ! एक बात एक किसान ने एक राज नियम तोडा ! किसान तो राज दरबार में प्रस्तुत किया गया! दंड स्वरुप, राजा ने किसान के सम्मुख सजा के तीन प्रकार रखे और उनमें से किसी एक का चुनाव अपनी इच्छा अनुसार करने को कहा !
पहला दंड था सौ कोड़े का, दूसरा था सौ प्याज़ खाने का और तीसरा सौ रुपये राजकोष में जमा करवाने होंगे ! किसान ने सोचा की इस गरीबी में सौ रुपये देना मुश्किल है ! सौ कोड़े अत्यंत पीड़ा दायक होगा अतः उसने पहले सौ प्याज़ खाने का निर्णय लिया! किसान के सम्मुख सौ प्याज रखे गए ! मुश्किल से सत्तर प्याज़ खाने के बाद किसान ने अपना निर्णय बदल दिया ! किसान ने राजा से आग्रह किया - राजन अब मुझसे और नहीं होगा, मुझे सौ कोड़े की सजा मंज़ूर है ! राजा ने तुरंत सौ कोड़े लगाने का हुकुम दिया ! मुश्किल से किसान पचास कोड़े खाने के बाद दर्द से कराहने लगा ! उसने फिर विनती की - राजन मुझे क्षमा कर दें अब और नहीं होगा, मैं सौ रुपये देने को तैयार हूँ ! किसान ने सौ रुपये राजकोष में जमा करवा दिए !
ऐसी परिस्थितियाँ बहुधा जीवन में आती हैं, जब हमें अपने निर्णय बीच में बदलने पड़ते हैं, जिससे समय, पैसा और ऊर्जा नष्ट होती है ! परिणाम स्वरुप या तो लक्ष्य से पूर्णतया भटक जाते हैं या फिर लक्ष्य तक पहुँचने में जरूरत से ज्यादा समय लग जाता है!
यूँ तो निर्णय लेने की कई मान्य पद्धतियाँ हैं उनमें से सरल और प्रभावशाली है - लाभ हानि का आंकलन ! अनेक उपलब्ध मार्ग, या एक से ज्यादा समस्या के हल उपलब्ध हों तो इस विधि का प्रयोग करें ! कागज पे दो हाशिये बनाएं ! एक तरफ लाभ लिखें और दूसरी तरफ हानि! फिर हर एक संभव हल के लिए उससे होने वाले लाभ और हानि को लिखें ! फिर यह भी लिखें की जीवन के किन किन पहलूवों पर कितना नुकसान या जायदा होने की सम्भावना है! मूल्याङ्कन करें, कितना हानि उठाने में आप समर्थ हैं ! ऐसा करने से आप या समझ सकेंगे की कौन सा मार्ग सवोत्तम है!
एक बार जब निर्णय ले लिए जाये तो उसकी योजना बना डालें ! लिपिबद्ध करें ! जो विचार लिपिबद्ध नहीं किया जाते वो अक्सर खो जाते हैं ! योजना में लिखें की कौन सा कार्य कब और कैसे करेंगे! तारिख डालें ! किन किन व्यक्तियों और सामग्रियों की आपको आवश्कता होगी और उन्हें आप कैसे प्राप्त करें यह भी लिखें! और फिर क्रियान्वित करें ! योजनाबद्ध तरीके से किया हुआ कार्य शीघ्र फलदायी होती है !

रविवार, मई 12, 2013

धूप तेज़ है, अब आगे, अकेला ही चलने दो,


धूप तेज़ है, अब आगे, अकेला ही चलने दो,
दुश्वारियां हैं बहुत, बैर्हाँ अब तनहा ही रहने दो ! (1)

चंद लम्हों का सफ़र है मालूम तो था तुम्हें
फिर नाराज़ खुद से क्यों, ये हक मुझ तक ही रहने दो (2)
...
सौगात तो मिली है न इन हसीन यादों की
जो दबी सी है दिल में, वो बस दिल में ही रहने दो (3)

फूल सा जो जीवन लेकर आये थे इस जहां में
अफ़सोस न करो, मुरझाई पंखुड़ियों को गिरने दो (4)

कुछ रास्तों में हरदम सुहानी छाँव रहती है
तुम ऐसे रास्तों, हमसफ़र की जरी तलाश रहने दो (5)

आसान रास्तों की इजाद में कर ही नहीं सका
दीवाना हूँ मुझे मेरे फलसफों में डूबा रहने दो (6)

शनिवार, मई 11, 2013

मैं इसलिए रुका रहा

मैं इसलिए रुका रहा,
की तुम तो आगे बढ़ सको !
इसलिए चुप रहा,
कि तुम तो कुछ कह सको !

नज़रें नज़रंदाज़ की,
की तुम नज़र उठा सको!
रास्ते से हट गया,
की राह तुम बना सको !

... इसलिए अलग हुआ,
कि कोई तुमको मिल सके!
प्यार जो न दे सका,
वो कोई और दे सके!

में किस किस से क्या कहूँ
जब तुम ही न समझ सके,
तुम ही न समझ सके !

कुछ शेर


नहीं अब, चलने देंगे, तुमको, अकेले तन्हाँ
हर मोड़ पे देंगे, हम , मिलके इंतेहाँ
ग़म के बादल छंट ही जायेंगे
मिलके रहेंगे दो दिल जहाँ
नहीं अब, चलने देंगे, तुमको, अकेले तन्हाँ

नहीं रोको, चलने दो, हमको, अकेले तन्हाँ
मुश्किलें भरी हैं राहें साथ दोगॆ कहाँ कहाँ
राहें मेरी मुझे मुबारक हों तुम्हारी तुमको
छोड़ो अब जिद्द अपनी मानो मेरा कहना
नहीं रोको, चलने दो हमको अकेले तन्हाँ


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चली जो नसीम - ए - सहर तुमसे मिल कर
सहर में महक हुई बसर तुमसे मिल कर
चमन में महकती बहार आ गयी अब
झूमने लगी है कलियाँ भी खिल कर
शायद तुमको खबर भी ये न हो
हुआ जादू सा दिल पे असर तुमसे मिल कर
कहने लगी है पागल अब दुनिया
जबसे रहने लगे हैं बेखबर तुमसे मिल कर


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फ़ना तो हो गए तुम्हारे प्यार में हम,
पर चेहरे पे शिकन को आने न दिया!
लोग पूछ न बैंठे मेरी बदहाली का सबब तुमसे,
इसलिए चेहरे से हंसी को रुखसत होने न दिया !!


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हो रहा जिस तरह मर्यादा का मर्दन ,
अब तो जागिये जनता जनार्दन!
जगाइए उनको जिनके सो गए ईमान,
इंसान का सबसे बड़ा डर बन गया इंसान !


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कुछ मन का अवसाद मिटे,
कुछ अँधियारा मन का सिमटे,
जीवन के रंगोली में, जीवंत रंग भरो साथी,
रंग हो पक्का, जो न छुटे, अब ऐसा रंग रंगों साथी !!


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दिलो दिमाग़ बोझिल सा होता जा रहा है
ज़िंदगी में कोई जबसे शामिल होता जा रहा है
दोस्ती है या मोहब्बत किसको खबर है
लगता है की बरसो पुराना हमसफ़र है


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मैं मोहब्बत की खुमारी में ये क्या कह गया,
तुमको जान, दिल-ओ-जान, खुदा कह गया!!
तुमने तो हसीं ख्वाब चौपट कर दिए,
जब कानो में प्यार से ये कह दिया
तुमसे पहले भी खुदा सबका था
तुम्हारे बाद भी खुदा सबका है!


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दिल दीपक प्रज्वलित करें,
फैलाएं प्रेम आलोक !
लक्ष्मी गणेश का वंदन करें,
मिटे कष्ट और शोक!!

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प्यार पे प्यार आना तो लाज़मी ही है
बेरुखी पे भी बे इन्तहा प्यार आता है
जितनी भी दूरियां बढ़ाते जाओ तुम
दिल खुद ब खुद उतना करीब आता है


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 चलो तो कुछ कदम साथ साथ,
रफ्ता रफ्ता, धूप ढल ही जाएगी !!
यूँ ही कट जायेगा सफ़र चलते चलते,
रफ्ता रफ्ता मंजिल मिल ही जाएगी!!









 

शनिवार, जनवरी 05, 2013

जब सपनो में आती हो


मीलों दूर हो तुम शायद
पर जब सपनो में आती हो,
सोये अंतर्मन को ऐसे
झंकृत कर जाती हो,
सरगम बजने लगती है
देहाकृत वीणा पे !

रक्ताभ अधरों से
मुस्कान बिखेरा करती हो
अधखुले नयनो से
नयनो की क्रीडा करती हो
रास उतर आता है
देहाकृत क्रीडांगन में

पर जब कभी,
जीवन की लहरों से टकराकर
मन अवसादित होता है
तब जब सपनो में आती हो
छू कर अपने होने का अहसास कराती हो
फौलाद संचारित होता है, हांड मांस के पुतले में

हाथों पे हाथ रख के
निःशब्द निहारा करती हो
आँखों की मूक भाषा में
ये कहती रहती हो
कब दूर हुई, दूर कहाँ हूँ तुमसे,
हर पल रहती हूँ तुम्हारे ह्रदयालय में

आलोक कुमार श्रीवास्तव 2012

मैं तनहा हूँ


मैं तनहा हूँ
पर तेरा इंतज़ार है
मालूम है तुम नहीं आओगे
फिर भी मिलने को दिल बेक़रार है

मेरी यादें कुछ बाकी हैं अभी,
या तेरी महफ़िल गुलज़ार है
बेच दिए होंगे तुमने मेरी यादें
खुदा भी बिकते हैं यह ऐसा बाज़ार है
इश्क हुआ मेरा तुमसे
मेरा पागलपन तुम्हारा अहसान है
दिए ज़ख्म अभी भरे भी नहीं
ज़ख्म खाने को फिर दिल परेशान है

मोहब्बत तो तुमसे, संभाली गयी न


मोहब्बत तो तुमसे, संभाली गयी न,
नफरत भला तुम निभाओगे कैसे !
मुझको खुद पे यकीं हो चला है,
खींचे चले आओगे भँवरे के जैसे !

गिले शिकवे याद आएंगे तुमको,
कुछ लोग मुझको बुरा भी कहेंगे !
कमियां निकाली जाएँगी मुझमें,
हर तरफ से मुझे गलत ही कहेंगे !
ऐसी महफ़िल में रह न सकोगे,
हाँ में हाँ उनकी मिलोगे कैसे!

मोहब्बत तो तुमसे, संभाली गयी न,
नफरत भला तुम निभाओगे कैसे !

भुलाने के नुस्खे बताएगी दुनिया,
मिटाने को ताल्लुक समझाएगी दुनिया !
ये भी कहेगी की रखा ही क्या था,
ऐसी मुहब्बत का फायदा ही क्या था !
लोग जब नाजुक सा दिल तोड़ देंगे,
तडपते दिल को संभालोगे कैसे !

मोहब्बत तो तुमसे, संभाली गयी न,
नफरत भला तुम निभाओगे कैसे !

कभी इस अंजुमन में तो आ


कभी इस अंजुमन में तो आ,
मौसम - ए - बहार की तरह!
रिमझिम रिमझिम, हौले हौले बरस,
पहली बारिश की फुहार की तरह!
ज़रा सी जिद से दूरियां कितनी बढ़ गयीं,
दिलों के बीच, खिंची, पत्थर की दीवार की तरह!
गुस्सा तुम्हारा अब और भी हंसीं लगता है,
छलकता है आँखों से प्यार की तरह !
दिल चाहता है दिल से लगा लो मुझे,
जेवर नहीं, बेशकीमती श्रृंगार की तरह !
या फिर मिटा दो हस्ती मेरी
उड़ा दो खाक-ए-गुबार की तरह
मेरी ज़िन्दगी भी क्या बिना तुम्हारे
वीरान उजड़े हुए मज़ार की तरह

(आलोक कुमार श्रीवास्तव 2012)

ये प्यार नहीं है, तो क्या है !




ये प्यार नहीं है, तो क्या है !
अहसास नहीं है, तो क्या है !

तन्हाई की रातों में,
जब चाँद उतर आता खिड़की पर,
सर्द हवाएं दे जाती हैं,
दस्तक चुपके चुपके खिड़की पर,
याद किसी की आती है,
आंखें टिक जाती खिड़की पर !
चादर पर सिलवट पड़ जाती है,
और तकिया नम हो जाता है!

ये प्यार नहीं है तो क्या है !
अहसास नहीं है तो क्या है !

खुद ही खुद में कुछ तो बुनती हो,
हंस कर अब सबसे मिलती हो!
वक़्त गुज़रता है अब ऐसे,
बहता पानी दरिया में जैसे,
पांव थिरकते हैं अब ऐसे,
पंछी, चंचल हो घर लौटता जैसे!
मिलने पर दिल घबराता है
और दिल की धड़कन बढ़ जाती है !

अहसास ही है कुछ और नहीं
ये प्यार ही है कुछ और नहीं

ग़ज़ल - उसकी याद ने, चैन से, सोने न दिया



हुआ जो दीदार, बिछुड़े यार से, कल रात को,
उसकी याद ने, चैन से, सोने न दिया !!
शमा की तरह, जलता रहा, विरह की आग में,
मिलन की आस ने, सुबह तक, सोने न दिया !!
महकने लगी, दर - ओ - दीवार, उसके आने से,
उसकी खुशबू ने, रात भर, सोने ने दिया !!
बज रही थी, उसकी पायल, इस कदर की,
जेहन में बस गयी, झंकार ने सोने न दिया !!
गयी जब, करके मुलाकात, कर रात को,
उसके हँसते चेहरे ने, जी भर के रोने न दिया !!
जीना नहीं अब चाहता, उसके बिना "मासूम",
उसकी अधखुली, मुस्कान ने मरने न दिया !!

अलोक कुमार श्रीवास्तव "मासूम" 2012
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1. दीदार - दर्शन
2. विरह - जुदाई
                                                                   3. दर -ओ- दीवार – doors and walls, every dewlling, every nook and corner of house
4. जेहन - mind