कभी इस अंजुमन में तो आ,
मौसम - ए - बहार की तरह!
रिमझिम रिमझिम, हौले हौले बरस,
पहली बारिश की फुहार की तरह!
ज़रा सी जिद से दूरियां कितनी बढ़ गयीं,
दिलों के बीच, खिंची, पत्थर की दीवार की तरह!
गुस्सा तुम्हारा अब और भी हंसीं लगता है,
छलकता है आँखों से प्यार की तरह !
दिल चाहता है दिल से लगा लो मुझे,
जेवर नहीं, बेशकीमती श्रृंगार की तरह !
या फिर मिटा दो हस्ती मेरी
उड़ा दो खाक-ए-गुबार की तरह
मेरी ज़िन्दगी भी क्या बिना तुम्हारे
वीरान उजड़े हुए मज़ार की तरह
(आलोक कुमार श्रीवास्तव 2012)
मौसम - ए - बहार की तरह!
रिमझिम रिमझिम, हौले हौले बरस,
पहली बारिश की फुहार की तरह!
ज़रा सी जिद से दूरियां कितनी बढ़ गयीं,
दिलों के बीच, खिंची, पत्थर की दीवार की तरह!
गुस्सा तुम्हारा अब और भी हंसीं लगता है,
छलकता है आँखों से प्यार की तरह !
दिल चाहता है दिल से लगा लो मुझे,
जेवर नहीं, बेशकीमती श्रृंगार की तरह !
या फिर मिटा दो हस्ती मेरी
उड़ा दो खाक-ए-गुबार की तरह
मेरी ज़िन्दगी भी क्या बिना तुम्हारे
वीरान उजड़े हुए मज़ार की तरह
(आलोक कुमार श्रीवास्तव 2012)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें