हुआ जो दीदार, बिछुड़े यार से, कल रात को,
उसकी याद ने, चैन से, सोने न दिया !!
शमा की तरह, जलता रहा, विरह की आग में,
मिलन की आस ने, सुबह तक, सोने न दिया !!
महकने लगी, दर - ओ - दीवार, उसके आने से,
उसकी खुशबू ने, रात भर, सोने ने दिया !!
बज रही थी, उसकी पायल, इस कदर की,
जेहन में बस गयी, झंकार ने सोने न दिया !!
गयी जब, करके मुलाकात, कर रात को,
उसके हँसते चेहरे ने, जी भर के रोने न दिया !!
जीना नहीं अब चाहता, उसके बिना "मासूम",
उसकी अधखुली, मुस्कान ने मरने न दिया !!
अलोक कुमार श्रीवास्तव "मासूम" 2012
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1. दीदार - दर्शन
2. विरह - जुदाई
3. दर -ओ- दीवार – doors and walls, every dewlling, every nook and corner of house
4. जेहन - mind
4. जेहन - mind
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