गुरुवार, दिसंबर 24, 2009

नसीब की बात



मैं खुश नसीब भी नहीं, मैं बदनसीब भी नहीं,
मुझे दोस्त भी मिला, पर नसीब में नहीं!

वो बेवफा भी नहीं, मैं बेवफा भी नहीं,
एक दोस्त तो मिला, पर नसीब में नहीं!

वो दूर भी नहीं, औ करीब भी नहीं,
बस इतना समझ लो की अब नसीब में नहीं!

कोई साज़िश नहीं, कोई फसाना नहीं,
अब वो अपना नहीं, बेगाना भी नहीं!

मैं खुस-नसीब ..........................

माज़ी के पन्ने



आपने तो पलट दी हैं माज़ी के पन्ने
मुद्दत से दबा कर रखा था हमने!

याद आ गई वो उलफत की बातें
मुश्किल से दिल में दबाया था हमने!

वो हसीन वक़्त, मंज़र और वो लम्हें,
जो कभी साथ बिताए थे हमने!.

वो काली घटा सी उड़ती हुई जुल्फें
जिन्हें उंगलियों से संवारा था हमने!

सम्भलता नहीं दिल अब मेरा कसम से,
अब तो पलट ही गये माज़ी के पन्ने!