गुरुवार, दिसंबर 24, 2009

माज़ी के पन्ने



आपने तो पलट दी हैं माज़ी के पन्ने
मुद्दत से दबा कर रखा था हमने!

याद आ गई वो उलफत की बातें
मुश्किल से दिल में दबाया था हमने!

वो हसीन वक़्त, मंज़र और वो लम्हें,
जो कभी साथ बिताए थे हमने!.

वो काली घटा सी उड़ती हुई जुल्फें
जिन्हें उंगलियों से संवारा था हमने!

सम्भलता नहीं दिल अब मेरा कसम से,
अब तो पलट ही गये माज़ी के पन्ने!

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