शनिवार, नवंबर 24, 2012

प्रेम - याचना

        

बेचैन हो रहा हूँ, छाने लगा नशा है,
दिन में भी मुझको अँधेरा लग रहा है!
कुछ समझ में नहीं आता, क्या आज हो रहा है?
अरमानों का दिल में शैलाब उठ रहा है !
तू पुकार मेरी, सरे जहाँ को बता दे,
नशा बुझ न जाये, आँखों से  मदिरा पिला दे,
अपनी ज़िन्दगी के हित प्यार मांगता हूँ !
धधकती जवानी का श्रृंगार मांगता हूँ ! (1)

बेचैन धडकनें हैं, बेखबर हो रहा हूँ,
अब कोई तो बता दे, किस्ती कहाँ चली है !
भंवर है,  दूर है,  या पास है किनारा,
यह इश्क का नशा है, या प्रेम का  सितारा ?
तुम दिल पे, प्रेम से लिख लो नाम मेरा !
कमी तुम्हारी इस तरह, चारो तरफ अँधेरा !
इस दिल को भेदने का उपचार मांगता हूँ ,
अपनी जिन्दगी में पहचान मांगता हूँ !(2)

आग का शोला, बुझ ढेर हो रहा है,
रो रही है जवानी, अंधेर हो रहा है !
तुम मूक बैठी हो, यहाँ देर हो रही है,
जीवन - संध्या की बेर हो रही है !
दिल में उठे उमंगों को क्यों दबा रही हो ?
झूठे अरमानों से दिल क्यों बहला रही हो
मैं भगवान् से सिर्फ तुम्हें ही मांगता हूँ ,
और तुमसे अपना प्यार मांगता हूँ !(3)

करवट बदल बदल कर रातें गुजारतें हैं,
अपने सपनो में तुम्हें ही पुकारतें हैं !
इन सूनी सूनी आँखों में चिंगारियां जला दे .
दिल में आकर प्रेम श्रृंगी बजा दे .
फिर एक तीर सीने के आर पार केर दे,
दिल को सुकून आये ऐसा  प्यार दे दे,
बेचैन जिंदगी में प्यार मांगता हूँ ,
भगवन से तुम्हीं को बार बार मांगता हूँ। (4)

(आलोक कुमार श्रीवास्तव   2012)



रविवार, नवंबर 04, 2012

ऐसे तो चुप रहो न




कुछ तो तुम कहो न, ऐसे तो चुप रहो न !
क्या बात है, क्या है कमी,
क्या है ग़म, कहो न !
कुछ तो तुम कहो न, ऐसे तो चुप रहो न !

आसमान को भी झुका दें
पर्वतों को भी हम हटा दें
खिलें हैं फूल जितने
तेरी राहो में सजा दें
चाहे जितनी मुझे सज़ा दो
पर ऐसे तो चुप रहो न
कुछ तो तुम कहो न, ऐसे तो चुप रहो न !

अब छोड़ो भी सारी बातें
हैं ये कितनी हसीं रातें
गर मुश्किल पड़े सफ़र में
राहें भी साथ न दें
गर मंजिल भी खो जाये
तो भी जुदा न होना
कुछ तो तुम कहो न, ऐसे तो चुप रहो न !

जब से हुई है मोहब्बत किसी से


जब से हुई है मोहब्बत किसी से
प्यार हो चला है हमें ज़िन्दगी से
वक़्त की कुछ खबर ही नहीं है
कहाँ वक़्त गुज़रा कहाँ रात की है
खुशबू उसी की ज़हन में बसर है
गुलों पर भी लगता उसी का असर है
खिलने लगी हैं अब कलियाँ भी ऐसे
ले रही वो अंगड़ाइयां जैसे