रविवार, नवंबर 04, 2012

ऐसे तो चुप रहो न




कुछ तो तुम कहो न, ऐसे तो चुप रहो न !
क्या बात है, क्या है कमी,
क्या है ग़म, कहो न !
कुछ तो तुम कहो न, ऐसे तो चुप रहो न !

आसमान को भी झुका दें
पर्वतों को भी हम हटा दें
खिलें हैं फूल जितने
तेरी राहो में सजा दें
चाहे जितनी मुझे सज़ा दो
पर ऐसे तो चुप रहो न
कुछ तो तुम कहो न, ऐसे तो चुप रहो न !

अब छोड़ो भी सारी बातें
हैं ये कितनी हसीं रातें
गर मुश्किल पड़े सफ़र में
राहें भी साथ न दें
गर मंजिल भी खो जाये
तो भी जुदा न होना
कुछ तो तुम कहो न, ऐसे तो चुप रहो न !

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