गुरुवार, फ़रवरी 16, 2012

इश्क और जंग









क्या हो गया पड़ी भंग,

जीवन के रंग में!

सह्सवर ही गिरते हैं!

मैदान -ऐ - जंग में ! (१)


जा गुलिस्तान में,

देखो ये माली!

कांटे भी होते हैं,

फूलों के संग में!! (२)



हंसने का छलावा,

तो कर लेते हैं सभी!

दर्द झलक ही जाता है

हंसने के ढंग में! (३)



क्या बचकानी बातें,

किससे करता है 'मासूम"

जहाँ सुब कुछ जायाज है

इश्क और जंग में!! (४)


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