जबसे मिले हो
तुम हमसे!
कुछ कशमकश में रहते
हो,
कुछ खुद ही
खुद में बुनते
हो!
मुस्किल से जो
कभी मिलते,
तो भी दूर
दूर रहते हो!
न कभी ढंग
से बात हो करते,
न कभी पूछते
हो, कैसे हो!
क्या दर्द छुपा
बैठे हो
ने रोते हो
न हो हँसते,
जब जाऊं गुज़र
रस्ते से,
तो तकते रहते
हो रस्ते!
कई बार यूँ
ही देखा है,
जबसे मिले हो
तुम हमसे!
कुछ कशमकश में रहते
हो,
कुछ खुद ही
खुद में बुनते
हो!
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