शुक्रवार, सितंबर 27, 2024

कलम चली, फिर से

कुछ अरसे से कलम मेरी बंद पड़ी थी,सो
चता हूं, फिर से, स्याही में डूबा के देख लूं,

कुछ जज्बात,  जहन में, न जाने कहां दफन हैं,
सोचता हूं, फिर से, लफ्जों में उतार के देख लूं,

जो कहूं, वो आए पसंद, ये हुनर ही नहीं है,
सोचता हूं, फिर भी, कोशिश तो करके देख लूं,

कोशिश तो कर रहा, कुछ फरेब ही सीख लें,
फिर सोचता हूं, पहले सच का असर तो देख लूं।

कुछ अरसे से......

( आलोक कुमार श्रीवास्तव )

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