एहसास हो तुम मेरे मन का,
धड़कन हो इस जीवन का,
दिल कहता है तुम भी सुन लो,
तुम मेरी हो, तुम मेरी हो.
(1)
मेरा जीवन बिखरा- बिखरा
बह निकला था एक दरिया सा.
तुम सागर हो तुम साहिल भी,
तुम रास्ता भी और मंज़िल भी.
महसूस किया करता जिसको
तुम ऐसी उसकी रचना हो.
एहसास हो तुम मेरे मन का,
धड़कन हो इस जीवन का,
दिल कहता है तुम भी सुन लो,
तुम मेरी हो, तुम मेरी हो.
(2)
एक शरम हया सी आँखों में,
फूलों कि डाली झुकती हो.
कलियों से कोमल लव तेरे,
खुलतें हों और बंद होतें हो.
दिल गून्जन करता बरसों से,
छंदों वाली वो कविता हो
एहसास हो तुम मेरे मन का,
धड़कन हो इस जीवन का,
दिल कहता है तुम भी सुन लो,
तुम मेरी हो, तुम मेरी हो.
(3)
किस्मत कि कुछ बात नहीं
ये जन्म -जन्म के रिश्तें हैं
धरती पर नहीं हुआ करते
तय आसमान में होते हैं
कोई केह दे, केह दे कविता
तुम चलती- फिरती गीता हो.
एहसास हो तुम मेरे मन का,
धड़कन हो इस जीवन का,
दिल कहता है तुम भी सुन लो,
तुम मेरी हो, तुम मेरी हो.