रविवार, नवंबर 05, 2006

बारिश का इंतज़ार



[1]
एक कशिश सी है उनकी बातों में,
जो बढ़ती ही जाती है रातों में
फिर साँसों का एक सिलसिला चलता है
दिल की धड़कन सौ गुना बढ़ जाती है

[2]
घबराहट होती है होंठों के हिलने से,
तूफ़ानों में भी ख़ामोशी आ जाती है
वो मुझसे हेर बार यही पूछा करते
ये हालात अब ज़्यादा दिन मुमकिन नहीं लगते..
आख़िर रश्मों की कब बारी आएगी?

[3]

समझा लो अब किसी तरह अपने दिल को
इस बार हम बात करेंगे दुनिया से
फिर आज़ादी होगी, खुले आसमान के नीचे जीने की.
बस इंतज़ार कर लो अगले बारिश के मौसम तक का...

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