सोमवार, नवंबर 06, 2006

हवा का झोंका


मैं संभालना चाहूं कि एक झोंका सा आता है
मैं फिसल जाता की तब-तक लौट जाता है
थी सोच पुरानी, की अब डर किस क़यामत का,
ये सोचते सोचते ही वो फिर लौट आता है
मैं खड़ा हूँ जहाँ , तले है ज़मीन, फ़लाक सर पर
मेरी आँखें ले लो तो तले है फ़लाक, ज़मीन सर पर
वादा करना चाहता हूँ तुझसे बहुत ये दोस्त
क्या करूँ करने से पेहले भूल जाता हूँ.
तकदीर बनाने वाले पर हँसी आती है खुदा जानी की उसको क्या क्या आता है
खुदा करे एक बार ऐसा झोंका आए, मैं फिसल जाओउं फिर कभी उठ ना पाओउन
अब संभालने फिसलने से डर लगता है क्योंकि ...मैं संभाल ...........

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