शनिवार, मई 22, 2010

मन की व्यथा



मन मे व्यथा, तन में व्यथा!
दिल में व्यथा, ज़ीवन में व्यथा!

यह व्यथा तो आँसू बन कर गिरना चाहे हैं,
कोई कब से नीचे दामन फैलाए है!

गिरतें हैं अश्क ज़रूर, सिमट जातें हैं दामन में
बन जाता है कोई मोती सुनहरा!

भेंट देते हैं जब वो मुस्कुरा कर,
लगता है दुनिया का रंग हरा भरा!

फिर अचानक जुब वो जाने की बात करतें हैं,
पथरा जाती हैं आँखें होंठ सूख जातें हैं,
देखना है फिर वो कब आते हैं!

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