क्या हो गया पड़ी भंग,
जीवन के रंग में
सहसावार ही गिरतें हैं
मैदनें जंग में
जा गुलिस्ताँ में
देखो यह माली
कांटें भी होते हैं
फूलों के संग में
क्या बचकनी बातें किससे
करता है "मासूम"
जहाँ सब कुछ जायज़ है
इश्क़ औ जंग में
आलोक कुमार श्रीवास्तवा "मासूम" १९९५
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